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 ऐच्छिक समापन


         जब कम्पनी के सदस्य एवं ऋणदाता ट्रिब्यूनल के हस्तक्षेप के बिना कम्पनी का समापन करने का निर्णय करते हैं तो इसे ऐच्छिक समापन कहते हैं। ऐच्छिक समापन का मुख्य उद्देश्य अंशधारियों एवं ऋणदाताओं को आपसी मामले स्वयं एवं पारस्परिक समझौतों द्वारा निपटाने का सुअवसर प्रदान करना है। ऐच्छिक समापन अधिक लाभप्रद है क्योंकि इसमें अधिनियम के अनुसार अपेक्षाकृत कम प्रतिबन्ध हैं। यही कारण है कि कम्पनी का समापन प्रायः इस रीति के द्वारा ही किया जाता है।


ऐच्छिक समापन की दशाएँ


निम्नलिखित दशाओं में कम्पनी का ऐच्छिक समापन किया जा सकता है 

(1) अवधि की समाप्ति-एक कम्पनी अपनी साधारण व्यापक सभा में प्रस्ताव पारित करके

कम्पनी का समापन कर सकती है यदि

 (i) अन्तर्नियमों में निर्धारित कम्पनी की अवधि समाप्त हो गई। हो, अथवा 

(ii) वह घटना घटित हो गई हो जिसके घटने पर अन्तर्नियमों के अनुसार कम्पनी का समापन हो जायेगा। (2) विशेष प्रस्ताव पास करना-कम्पनी अन्य किसी कारण से अपनी सभा में विशेष प्रस्ताव पास करके कम्पनी का ऐच्छिक समापन कर सकती है।


स्वेच्छा से समापन के विशेष प्रस्ताव का प्रकाशन 

यदि कम्पनी के समापन के लिए स्वेच्छा से विशेष प्रस्ताव पारित किया जाता है तो ऐसा प्रस्ताव पारित होने के 14 दिन के अन्दर कम्पनी द्वारा सरकारी गजट एवं समाचार पत्र में इस प्रकार की सूचना दिया जाना आवश्यक है। व्यवस्था का उल्लंघन करने पर कम्पनी और उसके प्रत्येक दोषी अधिकारी पर त्रुटि की अवधि में ₹50 प्रतिदिन के हिसाब से आर्थिक दण्ड लगाया जा सकता है। 


ऐच्छिक समापन का प्रारम्भ


कम्पनी का ऐच्छिक समापन उस तिथि से प्रारम्भ हुआ माना जाता है जिस  तिथि को ऐसा करने के लिये विशेष प्रस्ताव पारित किया गया है।


ऐच्छिक समापन का प्रभाव


कम्पनी के ऐच्छिक समापन की दशा में निम्नलिखित प्रभाव होते हैं

(1) स्वेच्छा से कम्पनी के समापन होने की दशा में, कम्पनी समापन प्रारम्भ होने की तिथि से अपना व्यापार बन्द कर देगी, जब तक कि व्यापार चलाये रखना कम्पनी के समापन के लिये आवश्यक न हो।

 (2) कम्पनी की समामेलित स्थिति एवं समामेलित अधिकार, कम्पनी के समाप्त होने तक बने रहेंगे।

(3) कम्पनी का समापन शुरू होने के बाद अंशों का हस्तान्तरण बिना निस्तारक की सहमति के व्यर्थ होता है। (4) कम्पनी का समापन शुरू होने के बाद कम्पनी के सदस्यों की स्थिति में किया गया कोई परिवर्तन व्यर्थ होता है।


ऐच्छिक समापन के प्रकार


 कम्पनियों का ऐच्छिक समापन दो प्रकार से किया जाता है

           (1) सदस्यों की स्वेच्छा से समापन 


जब कम्पनी अपने ऋणों का भुगतान करने में समर्थ है तथा उसके सदस्य कम्पनी का समापन करने का निश्चय करते हैं तो उसे सदस्यों द्वारा ऐच्छिक समापन कहते हैं। इसमें संचालकों द्वारा कम्पनी की शोधन क्षमता की घोषणा करनी पड़ती है। इसमें निस्तारक की नियुक्ति एवं पारिश्रमिक का निर्धारण साधारण सभा में की जाती है।

सदस्यों की स्वेच्छा से कम्पनी के समापन के लिए कम्पनी अधिनियम में निम्न प्रावधान हैं

 (1) शोधन-क्षमता की घोषणा-प्रत्येक ऐसी कम्पनी जिसका समापन सदस्यों की स्वेच्छा से किया जाता है, में यदि दो संचालक हैं तो वे दोनों ही संचालक और यदि उस कम्पनी में दो से अधिक संचालक हैं, उनमें से अधिकांश संचालक सभा में कम्पनी की शोधन क्षमता के सम्बन्ध में घोषणा करते हैं कि कम्पनी की आर्थिक स्थिति शोध क्षम्य है। इस घोषणा को ही शोधन क्षमता की घोषणा कहते हैं। इस घोषणा को तैयार करके रजिस्ट्रार के यहाँ प्रस्तुत करना चाहिए।

(2) विशेष प्रस्ताव पारित करना-शोधन-क्षमता की घोषणा करने के 5 सप्ताह के अन्दर कम्पनी के समापन के लिये विशेष प्रस्ताव पारित किया जाना चाहिए और इसकी सूचना 14 दिनों के अन्दर समाचार-पत्रों में प्रकाशित करा देनी चाहिए।

(3) समापन का प्रारम्भ-सदस्यों द्वारा विशेष प्रस्ताव पारित करने की तिथि से समापन का कार्य प्रारम्भ हुआ माना जाता है।

(4) निस्तारक की नियुक्ति एवं पारिश्रमिक निर्धारित करना-शोधन-क्षमता की घोषणा के बाद और कम्पनी के समापन के लिए सदस्यों की सभा में विशेष प्रस्ताव पारित करने के बाद इस सभा द्वारा एक से अधिक निस्तारक नियुक्तकर दिए जाते हैं तथा उनका पारिश्रमिक भी निश्चित कर दिया जाता है। किसी भी निस्तारक को अपना कार्यभार तब तक नहीं लेना चाहिए जब तक कि उसका पारिश्रमिक निर्धारित न कर दिया जाए।

(5) निस्तारक की नियुक्ति पर संचालकों, प्रबन्ध संचालकों आदि के अधिकार-निस्तारक की नियुक्तिके बाद संचालकों, प्रबन्ध संचालकों आदि सभी अधिकारियों के अधिकार समाप्त हो जाते हैं। ये केवल निस्तारक की नियुक्तिका नोटिस रजिस्ट्रार को भेजते हैं।

(6) निस्तारक के रिक्त स्थान की पूर्ति-यदि किसी निस्तारक की मृत्यु या अन्य किसी कारण उसका पद खाली हो जाता है, तब किसी अंशदायी द्वारा कम्पनी की सभा बुलाकर दूसरे निस्तारक की नियुक्ति की जा सकती है। से

(7) निस्तारक की नियुक्ति की सूचना-निस्तारक की नियुक्तिके दस दिन के भीतर रजिस्ट्रार को सूचना भेज देनी चाहिए अन्यथा कम्पनी और दोषी अधिकारी को ₹100 प्रतिदिन की दर से दण्डित किया जा सकता है।

        

              (2)लेनदार की स्वेच्छा से समापन 

       जब किसी कंपनी द्वारा शोधन क्षमता की कोई घोषणा नहीं की जाती एवं ऋण दाता कंपनी के समापन के लिए आदेश देते हैं तो ऐसी स्थिति में किया गया समापन ऋणदाताओं द्वारा ऐच्छिक समापन कहलाता है। ऐसे समापन में लेनदारों को कम्पनी के समापन के सम्बन्ध में अनेक अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। लेनदारों की स्वेच्छा से कम्पनी के समापन के लिए कम्पनी अधिनियम में | निम्नलिखित प्रावधान है 

(1) लेनदारों की सभा-कम्पनी के समापन के सम्बन्ध में जिस दिन अंशधारियों की सभा बुलाई जाती है, उसी दिन या उसके अगले दिन लेनदारों की सभा बुलाई जाती है। लेनदारों के पास भी सूचना डाक द्वारा उसी समय भेजी जानी चाहिए जबकि अंशधारियों के पास सभा की सूचना भेजी जाती है।

(2) सभा का नोटिस-लेनदारों की सभा से सम्बन्धित नोटिस को सरकारी गजट या ऐसे समाचार पत्रों में, जो कि उस जिले में प्रचलित हों जहाँ पर कि रजिस्टर्ड कार्यालय स्थित है, में देनी चाहिए।

(3) सभा में स्थिति विवरण रखना-लेनदारों की सभा में एक संचालक अध्यक्ष होता है। इस सभा में संचालकों द्वारा कम्पनी का स्थिति विवरण, कम्पनी के लेनदारों की सूची तथा उनके ऋणों का विवरण प्रस्तुत किया जाता है।

(4) सभा में पारित हुए प्रस्ताव की सूचना रजिस्ट्रार को देना-लेनदारों की सभा में पारित हुए प्रस्ताव की सूचना रजिस्ट्रार के पास कम्पनी द्वारा ऐसा प्रस्ताव पारित होने के 10 दिन के अन्दर भेज दी जानी चाहिए। यदि यह सूचना रजिस्ट्रार के पास नहीं भेजी जाती है तो कम्पनी और उसके प्रत्येक दोषी अधिकारी पर, त्रुटि की अवधि में ₹500 प्रतिदिन के हिसाब से अर्थ दण्ड लगाया जा सकता है।

(5) निस्तारक की नियुक्ति-कम्पनी के सदस्य एवं लेनदार दोनों अपनी-अपनी सभाओं में निस्तारक की नियुक्ति करते हैं। यदि दोनों सभाओं ने भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को निस्तारक नियुक्त किया है या ऐसी स्थिति में लेनदारों द्वारा नियुक्त व्यक्ति ही निस्तारक का कार्य करेगा। यदि लेनदार बिस्तारक की नियुक्ति नहीं करते हैं तो ऐसी स्थिति में सदस्यों द्वारा नियुक्त व्यक्ति ही निस्तारक का की कार्य करेगा। इस प्रकार नियुक्त किये गये निस्तारक की सूचना 7 दिन के भीतर संचालक सदस्य या लेनदारों द्वारा न्यायालय को दी जाती है।

(6) निरीक्षण समिति-यदि लेनदार चाहें तो अपनी प्रथम सभा में या अन्य सभाओं में अधिक-से-अधिक 5 व्यक्तियों की एक निरीक्षण समिति नियुक्त कर सकते हैं। इसके बाद कम्पनी के सदस्य भी इस समिति के लिये 5 सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं। यदि लेनदार कम्पनी के सदस्यों द्वारा निरीक्षण समिति के लिए मनोनीत सदस्यों पर आपत्ति प्रकट करते हैं तो ये ऐसे सदस्य समिति में कार्य नहीं कर सकते जब तक कि न्यायालय, लेनदारों के निर्णय के विरोध में कोई आदेश न दे। यदि न्यायालय उचित समझे तो वह लेनदारों द्वारा नियुक्त सदस्यों के स्थान पर कुछ अन्य व्यक्तियों को मनोनीत कर सकता है।

(7) निस्तारक का पारिश्रमिक-निस्तारक का पारिश्रमिक निरीक्षण समिति के द्वारा यदि निरीक्षण समिति न हो तो लेनदारों द्वारा निर्धारित किया जाता है। यदि लेनदारों द्वारा भी निस्तारक का पारिश्रमिक निर्धारित नहीं किया जाता है तो न्यायालय निस्तारक का पारिश्रमिक निर्धारित कर सकता है।

(8) संचालकों के अधिकारों की समाप्ति-निस्तारक की नियुक्ति के बाद अधिकार समाप्त हो जाते हैं। यदि निरीक्षण समिति या लेनदार चाहें तो संचालकों के अधिकार चालू रख सकते हैं।

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